ज्वाली में धूमधाम से मनाया ख्वाजापीर उत्सव
ज्वाली में धूमधाम से मनाया ख्वाजापीर उत्सव
सावन की संक्रांति पर झंडा चढ़ाकर की गई देवता की अराधना
जवाली। सावन संक्रांति के अवसर पर मंगलवार को जवाली में ख्वाजापीर उत्सव धूमधाम से मनाया गया। एक किश्ती को भव्य रूप में सजाकर इसमें ख्वाजापीर की प्रतिमा रखकर विधिवत पूर्जा-अर्चना और बाद में निकतवर्ती नदी या खड्ड में इसका विसर्जन स्थानीय लोगों द्वारा किया गया। लोगों की आस्था है कि जब बरसात में नदी-नालों में पानी उफान पर होता है तो इस स्थिति में मछली सवार ख्वाजापीर देवता उनकी रक्षा करता है और उन्हें हर प्रकार की अनहोनी से बचाकर रखता है। हालांकि, इसके पीछे कुछ दंतकथाएं भी जुड़ी हैं, जिन्हें आधार मानकर लोग इस परंपरा को निभाते हैं और इसके लिए युवा पीढ़ी को भी अवगत करवाते हैं।
जिला कांगड़ा के जवाली कस्बे में ख्वाजापीर पूजन की तैयारी करीब एक सप्ताह पहले शुरू हो जाती है। सबसे पहले तैयारी होती है बेड़ा बनाने की, जिसे लकड़ी से तैयार करना होता है। किश्ती को भव्य रूप देने के बाद इसमें ख्वाजापीर की प्रतिमा स्थापित की जाती है और धूप-दीप व दलिया चढाकर देवता की पूजा अर्चना की जाती है। इस कार्य के लिए किसी पंडित या पुरोहित को नहीं बुलाया जाता, परंपरा से जुड़े लोग खुद ही अपने तरीके से अपने देवता की अराधना करते हैं। सर्वप्रथम झंडा पूजन किया जाता है, इसके बाद देवता को फेरी देकर विसर्जन के लिए निकाला जाता है। लोग अपने देवता को दलिया, रोट, चपाती, हलवा और गेहूं से बनी कुंगणियां चढ़ाते है। इस दौरान झंडे पर कच्चा धागा भी बांधा जाता है और देवता की नदी में विदाई के बाद सामूहिक रूप में एक जगह पक्ंित में बैठकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह उत्सव उनके पूर्वजों की देन है और जैसे उनके पूर्वज मनाते थे वे भी सहज उसी तरीके से इस परंपरा को निभा रहे हैं और इसकी सीख युवा पीढ़ी को भी दे रहे हैं कि हमें अपने रिति-रिवाजों एवं परंपराओं को कभी नहीं भूलना चाहिए। इसी आस्था के साथ उनका समुदाय अपने देवता ख्वाजापीर के प्रति पूरी तरह समर्पित है। इस मौके पर जवाली के पूर्व प्रधान एवं मौजूदा पार्षद तिलक राज रपोत्रा, डॉ मनोज रपोत्रा, शेर सिंह, अवतार सिंह, किशन चंद, आदि मौजूद रहे।